Electro Homeopathy Remedy S3

Electro Homeopathy Remedy S3: S3 पूरे लसीका अंगों पर कार्य करता है। त्वचा, त्वचीय और चमड़े के नीचे की कोशिकाओं, ऊतक और ग्रंथियों पर भी इसका प्रभाव हे। सेंसरी नर्वस सिस्टम पर S3 का प्रभाव होता है। जबकि मोटर नर्वस सिस्टम पर S5 का प्रभाव होता है। जब किसी भी कारण से मेरुरज्जु से निकली हुई संवेदी तंत्रिकाए( सेंसरीनर्व ) अपना कार्य सामान्य ढंग से नहीं कर पाती , या उनका कार्य असामान्य हो जाये, यानी उनका कार्य सामान्य से घट जाए या बढ़ जाये। तो उन्हें सामान्य स्थिति में लाने के लिए S3 का प्रयोग किया जाता है।जैसा की हम जानते हे संवेदी तंत्रिकाए लिंग, पेट, सिर, हाथ पैर तथा त्वचा आदि में फैली हुईं है तो इन सभी जगह इसका अच्छा प्रभाव हे।

Electro Homeopathy Remedy S3
Electro Homeopathy Remedy S3
  • गैस्ट्रिक और आंतों के श्लेष्म, कब्ज और दस्त
  • त्वचा का फटना, और गहरे या सतही घाव।
  • त्वचा की काल्पनिक गतिविधियाँ, त्वचा के फटने के साथ-साथ अतिसंवेदनशीलता और हाइपरिडायोसिस के लिए सबसे अच्छा उपाय।
  • एक्जिमा, जीई या वाईई के साथ-साथ एलर्जी त्वचा का विस्फोट S3 + वेरंड वेन्ग्रुप।
  • त्वचा रोग S3 आंतरिक और S5 बाहरी में।
  • संवेदी रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका, तंत्रिका संबंधी उपाय, उच्च (उच्च) या हाइपोस्थेसिया (कम)।
  • लकवा S3 + S5। तंत्रिका तंत्र, केंद्रीय या सहानुभूति तंत्रिका तंत्र, नपुंसकता, हाइपरसेक्सुअल उत्तेजना और अप्सराएंमिया के दुर्बल रोगों।
  • गैस्ट्रिक और आंतों के श्लेष्म, कब्ज और दस्त।
  • S3 रेचक ( Laxative ) का मतलब है कम Dil में वृद्धि और उच्च Dil में कमी।

Best Effects of Electro Homeopathic Medicine S3

हस्तमैथुन ,अति मैथुन या अन्य किसी भी कारण से जब लिंग के संवेदनशीलता घट जाती है । या समाप्त हो जाती है। तो लिंग शिथिल हो जाता है। सेक्स की इच्छा नहीं रहती है। यदि इच्छा प्रबल हुई तो लिंग उत्तेजित नहीं होता है । जिसके कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए S3 का पॉजिटिव डोज़ रामबाण का कार्य करता है।

S3+C3+Ven1+F1+RE – D4 for no desire of Sex

Electro Homeopathy Remedy S3 effects on Skin

इस औषधि का विशेष प्रभाव Nerves System के संवेदी तंत्रिकाओं के माध्यम से त्वचा के डर्मिस भाग पर भी है। अतः त्वचा के डर्मिस भाग पर उत्पन्न समस्त रोगों को यह औषधि मूल औषधि के रूप में अपनी सहायक औषधियों के साथ जड़ से नष्ट कर देती है।

चाहे रोग का संक्रमण ऊपर से होकर त्वचा के डर्मिस भाग में पहुंचा हो, या फिर रोग का आक्रमण अंदर से होते हुए आकर के त्वचा के डर्मिस भाग में पहुंचा हो।

यदि रोग का आक्रमण त्वचा के वाह्य आवरण / ऊपरी परत से हो रहा हो ,तो सर्वप्रथम S5 का प्रयोग किया जाता है। यदि त्वचा के वाह्य आवरण को पार करके रोग एपिडर्मिस में पहुंच गया हो, तो S1या S2 का प्रयोग करना चाहिए। यदि रोग का वाह्य आवरण, और एपिडर्मिस को पार करके डर्मिस भाग में पहुंच गया हो , तो S3 का प्रयोग करना चाहिए।लेकिन ध्यान रहे पॉजिटिव में यह त्वचा से दाने निकालने का काम करती हे।

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